Thursday, August 19, 2010

धर्म या कलंक

धर्म या कलंक
हिन्दू धर्म कम कलंक अधिक है ,इस धर्म ने हम को बुजदिल बनाया हे हम इसी के कारन एक हज़ार सालों तक गुलाम बन कर रहे, अब समय आगया हे कि हम इस कलंक से अपना पिंड छुड़ा लें ,
संभव हे कि कुछ महापुर्शुं को यह कथन बुरा लगने वाला हो ,परन्तु फिर भी सोचो ,मन और बुद्धि से सोचो ,दिल से नहीं दिमाग से सोचो ,जिस का कोई धर्म गुरु न हो वः धर्म कैसा ,,
आप कहेगे धर्म गुरु हे ,उधाहरण में प्रस्तुत करोगे क्रष्ण और शिव को ,,हाँ में यही तो कहलवाना चाहता था बेटा ,,देख तो कृष्ण परायी महिला से प्यार कर के भगवन बन गया ,और जीवन भर अपनी पत्नी की, जिसका नाम ,रुकमनी, था जो वास्तव मैं उसकी पत्नी थी , उसने सुध न ली ,बस वः तो एक परायी महिला ,राधा, के संग रास लीला मनाया किये , उस ने बचपन में मक्खन चुराया ,तो इस से हमें क्या सीख मिली ,,क्या हम भी चोरी करना सीखें ,,आज हम कृष्ण जन्म ष्टमी पर आकाश में दही भरी हांड़ी बाधकरउसे बालकों से भुढ़वाते हें तो क्या बालकों को बताएं कि वः दूर से दूर रखे घर के मक्खन को यों ही चुराया करें ,,
,,श्रीमद भगवद पुराण,, में लिखा हे कि वः तालाब में स्नान करती महिलाओं के कपडे उठा कर पेड़ पर चला जाता और महिलाएं अपने वस्त्र मांगती तो कहता कि बाहर निकल कर मांगो ,वः बेचारी आगे पीछे अपने अश्लील अंग्गों पर हाथ रख कर बाहर आतीं तो वः महोदय कहते कि पहले हाथ जोड़ कर मुझे नमस्कार करो ,,,,,वाह भय्ये वाह ,,, अर्थात सब कुछ देखकर ही उन के वस्त्र देता था, क्रष्ण बाबू ,,,
और ,शिव जी, महाराज, की क्या बात करोगे ,,,उस ने अपने और अपनी पारबती के अश्लील अंग्गों लिंगों की ही हम से पूजा करादी,,, और हम चुप चाप शिव के लिंग की पारबती की योनी में गड़े खड़े के दर्शन करते रहे ,,,
और अगर पुरषोत्तम राम बाबु की पूछोगे तो बस चुप ही भली हे ,,अरे उसे किसने कहा था ,सूर्पनखा के नाक कान काटने को, उस के नाक कान क्या काटे अपनी नाक ही कट्वाली ,,.अपनी घरवाली को ही उठ्वादिया ,,,और जानते हो उस की घरवाली सीता अपनी मर्जी से रावण के साथ गयी थी ,,,नही मानते तो में बताउं,, वः धनुष जो किसी भी य्वराज से नहीं उठा था वः सीता ने उठा कर अलग स्थान पर रख दया था ,,यह देख कर ही तो राजा जनक ने कहता था कि मैं अपनी पुत्री का विवाह उस से करूंगा जो इस धनुष पर डोरी चढाये गा ,तो जब उसने सीता का स्यन्म्वर रचाया तो उसमें रावण भी आया था और उस शे भी वः धनुष उठ न सकता था जिस का अर्थ यह हे कि सीता रावण से अधिक बलवान थी ,,अगर वः चाहती तो उसको मार भागाती परन्तु उसने ऐसा न किया ,,क्यों ,,,इस लिए कि वः स्वयं जाना चाहती थी ,,, सच में ,,,

Wednesday, August 18, 2010

शाकाहार का प्रोपैगंडा


शाकाहार का प्रोपैगंडा

क्या मांसाहार पाप है,,,,?,,, उत्तर हाँ में है ,,,,कारण,,,?,,,, यह है कि यह जीव हत्या के बिना संभव नहीं ,,,,परन्तु क्या जीव हत्या के बिना शुद्ध शाकाहारी बन कर रहा जा सकता है ,,,?,,,अगर वह संभव नहीं तो यह भी संभव नहीं ,,कारण यह है कि कोई सब्जी ऐसी नहीं जो बिना जीव हत्या के उचित मात्र में मनुष्य को प्राप्त हो जाए ,,,अब देखये न ,एक टमाटर को प्राप्त करने के लिए कम से कम आठ परकार की सुंडियां और कीड़े मकोड़ों को मारना पड़ता है ,,ऐसे ही गोभी के लिए चौबीस परकार के ,आम के लिए नौ परकार के ,खीरा ,ककड़ी ,लौकी ,आदि के लिए सात परकार के जीवों की हत्या करनी ही होती है ,,और अगर ऐसा न किया जाए ,,तो फिर यह वस्तुएं मनुष्य को न मिल कर कीड़े माकोंडों की धरोहर बनकर ही रह जाती हें ,,,प्रश्न यह हे कि अपने पेट की आग को बुझाने के लिए किसी की जन क्यों ली जाए ,,उत्तर यह है की यह पर्कारती का नियम है ,और हम उस नियम को बदल नहीं सकते ,,जेसे और बहुत से नियमों से हमें समझोता करना पड़ता है ऐसे ही यहाँ भी करना ही होगा ,,,,,, अगला प्रश्न यह है कि जीव हत्या करने में उस जीव को पीड़ा होती है जो किसी भी परकार उचित नहीं ठहराया जासकता ,,परन्तु ,,मीरा उत्तर होगा कि पीड़ा,,,,,पीड़ा,,,, सब बराबर ,,जब आप टमाटर ,गोभी ,लोकी ,आदि प्राप्त करने के लिए कीड़ों ,सुंडियों ,को पीड़ा देने में संकोच नहीं करते तो ,,???,,,,अंतर यही तो है कि वहां तो छोटी पीड़ा है जो आप को आभास नहीं कराती ,,और बकरा ,सूअर आदि चीखता चिंघाड़ता है तो ,तब ,तो आप को आभास हो ही जा ता है ,,अरे भाई छोटे की छोटी पीड़ा ,क्यों कि ,मुर्गी को तकवे का दाग ही काफी होता है ,,और हाँ पीड़ा की बात भी सुनये,,, में ,,दावे से यह बात कह सकता हूँ कि जीव हत्या करने में उसे पीड़ा बिलकुल नहीं होती ,,,वह कैसे ,,चलये आप को भी बताते हैं ,जिसे आप भी अवश्य मानेंगें ,, इस को समझने के लिए आप कुछ बातें ध्यान में रखये (१) पीड़ा का सम्बन्ध मस्तिष्क से है (२) किसी भी जीव का शरीर पर्क्र्ती ने जान बूझ कर ऐसा बनाया है कि ,उस पर छोरा चाकू आदि की मार पड़े तो मस्तिष्क को आभास होने में पांच सैकेंड अवश्य चाहिए ,,,(३) और जानवर के गले की मुख्य नाड़ी को काटने में केवल तीन सैकेंड ही लगते हें ,,तो जब तीन सैकेंड में शरीर का मस्तिष्क से नाता ही टूट गया तो ,उसे आभास ही क्या हुआ ?,,,रही बात यह कि हम उसके शरीर का फडफडाना देखते हें ,तो उसका कारण पीड़ा नहीं ,अपितु शरीर से खून का रिसाव हे ,,,
क्या हरे पूर्वज भी मांस का भोज करते थे ,,? ,,,अवश्य ,,अवश्य ,,,अब देखये न, वाल्मीकि रामायण अयोध्या कांड ५३|२२ में पृष्टं क्या कह रहे हैं ,,
मर्ग का मांस ला कर हम अपनी कुटी में हवन करेंगे , क्योकि दीर्घायु चाहने वालों को ऐसा करना आवश्यक है ,हे लक्ष्मण शीघ्र ही मर्ग मार कर लाओ, ,,
वाल्मीकि रामायण अवोध्य कांड १६| १-२ में हे ,,रामचन्द्र जी पर्वत कि छोटी पर बैठे और सीता को मांस से प्रसन्न करते हुए कहने लगे कि यह भुत पवित्र हे ,ओर यह अत्यंत स्वादिष्ट हे ,यह आग में भुना हुआ हे ,
यजुर्वेद १३ \५१ में भी सही ,और हिरणों को मरने कि आज्ञा दी गयी हे ,,,
तात्पर्य यह है कि हमारे पूर्वज मांस खाते थे ,,और आज भी हम हिन्दू ही अधिक मांस खाते हैं ,,कसी भी नगर नें नज़र दौडाएँ अधिक मासहारी होटेल हमारे हें ,,, फिर भी हर करते हें ,,,शाकाहार का प्रोपेगेंडा ,,